सुनो,
ज़रा गौर से अपनी पलकें झुकाना,
रात तो रात, दिन में भी आज कल अँधेरा है,
‘भरोसा’, एक बहरूपिया है,
ढल सको तो रंग जाओ ज़माने के रंग में,
तुम्हारे हाथ ही तुम्हारा दिन और तुम्हारा सवेरा है.
जश्न - ए- मुकाबला है जारी, कभी खुद से, कभी पिरोये हुए ख्वाबों से, कभी मिलती कामयाबी से, कभी बेहतर करते रहने के हौसले से, कभी तुझसे मिलते साथ से, .... है जारी.